कभी बनके रंगीन ख़्वाब आँखों से छलकती हो
कभी होकर रंगहीन आंसु आंखो से बहेती हो.
ज़िंदगी तुम रोज़ बदलती हो.…
कभी चहेरे पर रंगीन तितलिया सी खेलती हो.
कभी कंपते हाथों बुढापा बनकर फिसलती हो.
ज़िंदगी तुम रोज़ बदलती हो…..
कभी हँसी मज़ाक मे घुंलकर हँसती गाती हो
कभी तुम पी कर शराब बेहिसाब बहेकती हो
ज़िंदगी तुम रोज़ बदलती हो.…
कभी ऐ जिंदगी! तुम एक पहेली सी लगती हो
कभी तुम सरल मधुर रचना जैसी दिखती हो
ज़िंदगी तुम रोज़ बदलती हो.…
कभी बीन पहिया तुम मेरे साथ दौड़ती रहती हो
कभी सबकुछ भूलाकर तुम चुपचाप रुकती हो
जिंदगी तुम रोज़ बदलती हो ….
-रेखा पटेल (विनोदिनी)
પ્રેમપરખંદા
April 4, 2015 at 6:45 am
No words. Clap clap clap.