कभी मेरा मन महकता गुलाब था
लेकिन तुमने कभी भी ,
प्यार का इजहार नहीं किया !!
प्यार जतलाने की नहीं
महसूस करने की है!
यही सोचकर ….
तुमने अपने मनके भावों को
मौन तले दबा कर रख दिया .
धीरे धीरे …
वो मौन वटवृक्ष बनकर
अपनी जड़ को
मजबूती से फैला गया !!
तुम्हारा प्यार भी ,
मेरे अंतर्मन की गुफामे
घ्सता चला गया !
मन को मैंने अपने ही हाथो ,
गुफामे बंद में कर दिया !!!
एक डर था फिर से जागृत होनेका .
जहा मैंने मन को,
शिद्दत से दबाके रख्खा था ,
कल रात वहा से
किसीकी आहे सुनाई दी ,
वो मेरे सपने ही थे !!
जो प्यार के अभाव में
छटपटा रहे थे ….
रेखा ( सखी )