राहे मजिल पर मिलता था उसको को भूलाकर बेठी हु मै ,
उसको भूलने की चाह में, खुद को भूलाकर बेठी हु मै .
अब यहाँ कौन आये कौन जाए क्या फर्क रह जाएगा ,
यहाँ दुनिया के सारे रस्मो रिवाज निभाकर बेठी हु मै .
इश्क का कातिल नशा छुपता नहीं छुपाने से,
अपने रूह तक गमे उल्फत उनकी फेलाकर बेठी हु मै .
अब जलने का डर नहीं हिज्र में जलते रहे उम्रभर ,
अब वफ़ा की खातिर दिलका दिया जलाकर कर बेठी हु मै .
अब दर्द और रंजिस को गले लगाकर क्या जीना,
खेलादिली संग अपनी सुन्दर लाश सजाकर बेठी हु मै .
रेखा पटेल (विनोदिनी )4/23/13
shushma
April 23, 2013 at 1:27 pm
aankhe nam ho gayee .. hraday se likhi panktiya …
Jaymini Patel
April 29, 2013 at 12:25 am
phir bhi ishqa bina kya jeena.