अजीब लगती है अपनी होकर कभी कभी
समजमें जिन्दगी नहीं आती कभी कभी
हँसती है बाहर से छुपाकर भीतर का भेद
तन्हाई होते छुपके से बहेती कभी कभी
अनजानी डगर पर खुशियो से भरी भरी
अपनो संग होकर अलग रहेती कभी कभी
हो दिलमे होसला, सपनोकी उड़ान ऊची
कदमोमे उसके मंजिल झुकती कभी कभी
बेजुबान बिकती रही शराफ़त यही कही
बात बुजर्गों कि राह दिखाती कभी कभी
रेखा पटेल (विनोदिनी )4/8/13