कहने को तो घर की लक्ष्मी
हक़ीक़त में पराश्रित और लाचार.
न घर में सुरक्षित न बाहर कही.
ज्यादातर पुरूषों के लिए
हाड़ माँस का खिलौना है शायद.
उनकी गीध सी आँखें नोचने को तैयार.
वो भूखे,बेजान जिस्म को भी नहीं बक्श्ते
नोच खाते है तन के साथ मन को भी .
अब बहोत हुआ ये नग्न तमाशा.
अब नए साल की प्रतिक्षा में
तेरा एक सहारा बाकी है
बनके मजलूम औरतो का मसीहा,
अब तो उदय हो जाओ….टूट चुकी हूँ मैं.
रेखा (सखी )
Ketan Desai
December 31, 2012 at 11:01 pm
Superb. Rekha you rocking. Keep up the good work. Congrats