कहेने सुनने को बहोत था, हमने कभी सुनाया ही नहीं,
कभी उसने पूछा नहीं, तो हमने उन्हें बतलाया ही नही.
यूँ तो दोस्त बनकर बहोत गुफ्तगू हुई हर एक दिन,
कही प्यारके रंगों को हमने तुमने बिखराया ही नहीं.
पसंद नापसंद सब उसकी जानते थे हर एक बातको
हमी बसे थे दिलमे उसने,तो कभी जतलाया ही नही.
अब ना दीवानगी के दीन रहे ना रही जुस्तजू बाकी ,
चाँदनी रातोमें चाँदने आँगन मेरा चमकाया ही नहीं.
आवाज़ मेरी सुनकर भी जबसे वो साथी अनजान हुआ ,
एक रोता है दिल मेरा पर आखोको हमने सताया ही नहीं.
रेखा (सखी)